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क्या तथाकथित राजनेताओं को कुछ भी बोलने का आजादी है?


आलोक कुमार, संपादक सह निदेशक खबर सुप्रभात


इन दिनों देश और खासकर बिहार में जातिय व धार्मिक उन्माद फैलाने का प्रयास तथा कथित राजनेताओं एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा गैरजिम्मेदाराना ब्यान मिडिया में देकर किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि इन तथाकथित राजनेताओं एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा अज्ञानता बस या फिर अनजाने

आलोक कुमार संपादक सह निदेशक खबर सुप्रभात

गैरजिम्मेदाराना बयान दिया जा रहा है। ऐसा भी नहीं की इन लोगों को यह नहीं मालूम कि इस तरह का गैरजिम्मेदाराना ब्यान से देश में न सिर्फ गंगा जमुनी तहजीब को धक्का लगेगा बल्कि समाज में भाईचारे का संबंध टूट कर बिखरने लगेगा। ऐसा भी नहीं की जो ब्यान दिया जा रहा है वह बिल्कुल ही गैर संवैधानिक है और अपराध के श्रेणी में आता है सबकुछ जानते हुए भी जानबूझकर ब्यान दिया जा रहा है।इस लिए ब्यान जान बुझकर दिया जा रहा है कि आम नागरिकों को अपनी मूलभूत समस्याओं जैसे बेरोजगारी गरीबी पलायन, भ्रष्टाचार बढ़ते अपराध सिंचाई बिजली शिक्षा और सरकार के सभी मोर्चों पर बिफल होने से उपजे जनाक्रोश से लोगों को ध्यान भटकाने के तहत सोचि समझी रणनीति के तहत गैरजिम्मेदाराना ब्यान दिया जा रहा है। चुके नियर भविष्य में होने वाले चुनावों में मतदाता अपने सवालों को भूलकर जाति और धर्म के विवादों में फस जाए और फिर हमलोगों से मतदाता चुभती हुई सवाल नहीं करे और अपना-अपना चुनावी वैतरणी फिर आसानी से पार करने में सफल हो जाएं। फिर लाख टके का सवाल आम लोगों के जेहन में तैर रहा है कि आखिर इन तथाकथित राजनेताओं एवं जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध क्या समाज में विद्ववेष फैलाने के प्रयास के विरुद्ध कानून संवत कारवाई नहीं होना चाहिए और नहीं तो क्यों? क्या इन लोगों को कुछ भी बोलने का आजादी है और यदि है तो क्यों? एक और कड़वी सवाल है – क्या इन तथाकथित राजनेताओं एवं जनप्रतिनिधियों को अपने अपने जातियों से सचमुच में प्रेम है या फिर अपने उल्लू सीधा करने और सत्ता के मलाई खाने के लिए सिर्फ जातिय उन्माद फैलाने का काम करते रहे हैं। आज स्थिति यह है कि देश में दलित आयोग पिछड़ा आयोग बना हुआ है तथा इन लोगों को विकास और उत्थान के नाम पर योजना तैयार किया जा रहा है लेकिन योजनाओं का लाभ धरातल पर नहीं उतारा जा रहा है। योजना मद्द के राशि को आखिर कौन डकार रहा है और इसके कमिशन कौन कौन खा रहे हैं। जांच के नाम पर लीपापोती और दोषियों को बचाने का काम कौन लोग और किसके छत्रछाया में हो रहा है। इन सवालों पर तथाकथित राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों द्वारा आखिर सदन में चर्चा न कर अनर्गल बहस मशविरा और हंगामा कर सदन को ठप क्यों किया जा रहा है। इसीलिए न की मूलभूत सवालों से पर बहस करने से बचा जाए और लोगों को छला जाए।