संवाद सूत्र खबर सुप्रभात समाचार सेवा
दाउदनगर प्रखण्ड के रेपुरा स्थित द टापर जोन के सभागार में जनवादी लेखक संघ औरंगाबाद के तत्वावधान में प्रेमचंद जयंती सप्ताह समारोह के अवसर पर ' बहुजन चेतना और प्रेमचन्द ' विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता जलेस के जिला उपाध्यक्ष श्रीनिवास मंडल ने की, जबकि संचालन जलेस कार्यकारिणी सदस्य अंबुज कुमार ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के चित्र पर माल्यार्पण कर

किया गया। विषय प्रवेश करते हुए अंबुज कुमार ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में जितनी बहुजन चेतना को दर्शाया गया है वह अन्यत्र दुर्लभ है। तत्पश्चात जलेस के जिला सचिव वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अलखदेव प्रसाद'अचल' ने कहा कि जिस समय उस व्यवस्था के खिलाफ लिखने की हिम्मत नहीं होती थी,उस समय मुंशी प्रेमचन्द सामंतवाद व पूंजीवाद पर हमला किया था,वह दूसरे साहित्यकारों के वश की बात नहीं थी।उस जमाने में प्रेमचंद जिस तरह बहुजनों को अपने उपन्यासों और कहानियों में नायक बनाया था,वह बहुत बड़ी बात थी। खेद है कि प्रेमचंद जिसके पक्ष में खड़े थे,आज वे ही लोग उन्हें कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। साहित्यकार शंभू शरण सत्यार्थी ने कहा कहा कि गोदान का गोबर हो या घीसू माधव,जिस तरह से पाखण्डवाद पर हमला करता है,वह बहुजन चेतना को ही दर्शाता है। श्रीनिवास मंडल ने कहा प्रेमचंद की रचनाओं में भारतीय समाज के बहुजन वर्गों के प्रतिनिधिक पात्रों को शामिल किया गया । होरी,गोबर,घीसू, माधव , शंकर,हल्कू, धनिया,झुनिया जैसे पात्रों के जीवन दशा को देखकर भारतीय समाज को समझा जा सकता है। रविनंदन ने कहा कि प्रेमचंद एक ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने समाज में जैसा देखा था, वैसा लिखा था। शशि भूषण कश्यप ने कहा कि मुंशी प्रेमचन्द हमेशा बहुजनों के पक्ष में खड़े दिखते थे। सन्नाउल्लाह रिजवी ने कहा कि प्रेमचंद ने अपनी अधिकांश रचनाओं में सामाजिक समस्याओं को ही उजागर किया है, जबकि उसका समाधान का अभाव दिखता है। शिक्षक संजय कुमार, कामता प्रसाद,ब्रजकिशोर मंडल, सद्दाम,अभिषेक कुमार, बलवन्त कुमार,संत कुमार ने भी प्रेमचंद की रचनाओं का जिक्र करते हुए उनकी महत्ता पर प्रकाश डाला।