औरंगाबाद,खबर सुप्रभात
औरंगाबाद जिले में वामदल इन दिनों कोमा में पहुंच चुका है। कभी जिले में वाम दलों का परचम लहराता था और गरीबों के दिलों पर लाल झंडा राज करता था। औरंगाबाद के राजनीति और प्रशासनिक महकमा में अपना प्रभाव डालने वाले वामदलों को आखिर अचानक कोमा में चले जाने का मूल वजह क्या रहा इसके लिए जिम्मेवार कौन लोग हैं इसपर वामदलों ने मंथन करने और फिर से संगठित होने का जरुरत भी नहीं समझ रहा है आखिर क्यों? जब आप इन सवालों का जवाब ढुढेगें तो साफ़ साफ़ दिखाई पड़ेगा कि इसके लिए पुरी तरह से जिम्मेवार वामदलों का तथाकथित क्षत्रपों कहे जाने वाले लोग ही हैं और इन लोगों ने जनता और खास कर गरीब लोगों से अपने आप कट चुके हैं। अपने नीतियों और कार्यक्रमों से कोसों दूर चले गए। आज स्थिति यह है कि तथा कथित वाम दलों के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं यहां तक कि समर्थकों ने भी जातिय उन्माद में फस चुके हैं और अगडा पीच्छडा के संघर्ष में कुछ लोग प्रत्यक्ष तो कुछ लोग अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय हो गए हैं तथा वर्ग संघर्ष को तिलांजलि देकर

जातिय संघर्षों को प्राथमिकता स्विकार करने लगे हैं। परिणाम यह है कि आम लोगों को अब वामदलों और वुर्जुवा संगठनों अथवा दलों के बीच का अंतर समझाना मुश्किल हो रहा है और आज जिन गरीबों और वाम जनवादी सोच रखने वाले लोग हैं उधेड बुन में फंसकर चौराहे पर खड़े दिखाई पड़ रहे हैं और यह तय कर पाना मुश्किल भरे कार्य हो गया है कि आखिर सचमुच में वाम दल है तो कहां और यदि है भी तो कहां और किसके पक्ष में खड़ा है।आज बेलगाम अफ्शर शाही, महंगाई, बेरोजगारी तथा चरम पर भ्रष्टाचार, प्रतिक्रिया वादी एवं सामंती ताकतें फिर से सर उठाने लगा है लेकिन जिले में वामदल वे खबर है तो इस स्थिति में वाम दलों को कोमा में चले जाने के अलावे कोई और रास्ता नहीं है।