सुनिल सिंह का रिपोर्ट
का बर्षा जब कृषि सुखानें….किसानों के लिए आद्रा नक्षत्र कृषि कार्य हेतू मिल का पत्थर साबित होता है ।इस नक्षत्र में अच्छी बरीश होनें सेही कृषि कार्य की शरूआत होती है ।धान की बिचड़ा बोवाई से लेकर रोपणी तक का कार्य वर्षा आधारीत क्षेत्रों में हो पाती है ।वहीं भदयी फसलों में मडुआ ,मकई ,बरसाती शब्जी की खेती भी आद्रा नक्षत्र की ही वर्षा पर निर्भर है ।आद्रा नक्षत्र की शुरू में थोड़ी बर्षा तो हुई ।किसान खुशी -खुशी धान का बिचड़ा की बुआई कर दिए ।तरीआनी खेतों में मक्का,अरहर ,तील ,बराई की बुआई मंहगे बीज खरीदकर तथा चौदह सौ रू.प्रति बिघा टैक्टर की जुताई देकर कर दिए ।बीजों का अंकुरण भी ठीक-ठाक रहा ।लेकिन किस्मत नेंधोखा दिया ।बिगत बीस दिनों से आसमानी बरसा नहीं हुई ।किसान टकटकी लगाकर कभी आसमान में उमड़ते -घुमड़ते बादलों को देखता है ,तो कभी बर्षा के अभाव में झुलसते फसलों एवं खेत में पड़े दरारों क़ो ।दोष दे तो किसे -अपनीं किश्मत को या उमड़ते मेघ को ।सरकारी अफसरान को या किसानों के हीतों की अनदेखी करनेंवाली सरकारी नीतिओं को ।जबजब चुनाब का मौसम आता है ,तबतब उतर कोयल नहर में पानीं देनें की बात कहकर भोलेभाले किसानों का भोट लेकर दिल्ली से पटना तक जाया जाता है ।इस नहर के निर्माण कार्य में लगे ठिकेदारों की ऊँची हबेलियाँ आज भी शहरों मे शान से खड़ी दिखती है ।ठगे तो जाते हैं किसान । अब अगर बर्षा भी होती है तो किस काम की ।सारे फसल तो झुलस गये ।ठीक ही कहा गया है –का बर्षा जब कृषि सुखानें ।