सुनील कुमार सिंह की खास रिपोर्ट
मदनपुर थाना से महज चार किलो मीटर पर पश्चिम दिशा में स्थित है दलेल चक गाँव तथा पाँच किलो मीटर पर है बधौरा । इसी दलेल चक – बघौरा गाँव में 29 मई 1987 की रात्री करीब 8 बजे दोनों गाँवों में प्रतिबंधित भाकपा – माओवादियों के द्वारा सामुहिक नरसंहार की घटना को अंजाम दिया गया


था।आज भी गया सिंह का विरान खंडहरनुमा घर के मुख्य दरवाजे के दिवाल पर लगे शहिदों की शिला पट्ट इस घर के मारे गये सामुहिक बीस व्यक्तियों की कहानी को वयाँ करता दिख जाता है। इसी गया सिंह के घर से महज सौ कदम की दूरी पर स्थित बुढ़ा बरगद का पेंड़ उस स्याह काली रात की सामुहिक नरसंहार की गवाही देता सिना तानें खड़ा भारतीय लोकतंत्र को खुली चुनौती देता दिखायी देता है। कभी इसी बरगद की छाँव में इस गाँव की चौपाल सजती थी, आज इसके शाखाओं पर चिड़िया भी अपना आसियाना बनाने से गुरेज करती है। बघौरा गाँव में राजपुत जाति के करीब दस घर राजपुत, तीन घर पासवान, चार घर चौधरी (पासी ) समाज के लोग एक साथ आपसी भाईचारा के साथ रहकर कृषि कार्य कर अपना जीवन – यापन किया करते थें। नौकरी के नाम पर सिर्फ गया सिंह ही वन विभाग में पलामु से सेवा निवृत होकर अपने घर बघौरा ही आकर रहनें लगे थें। लेकिन 29 मई 1987 की रात्री में पुरे गाँव बघौरा के सभी राजपुत जाति के लोगों को एक साथ सामुहिक हत्या कर दी गयी । घरों को लुट लिया गया था एवं आग के हवाले कर दिया गया था। दलेल चक गाँव में भी इसी दिन, एक ही समय तीन घरों के सभी स्त्री, पुरुष, जवान, बच्चों की सामुहिक हत्या कर दी । सिर्फ राजेन्द्र सिंह के घर के सोलह लोगों को समीप के पिपल के पेंड़ के नीचे एक साथ धारदार हथियार पसुली से गला काटकर कर दी गयी। इन तीन घरों के इक्का – दुक्का ही बचे थें जो कि घटना की रात्री बाहर गये हुए थें।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
क्यों हुआ था दलेल चक – बघौरा में सामुहिक नरसंहार
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
1970 की दशक से ही मदनपुर थाना क्षेत्र में भाकपा – माओवादी संगठन अपना फन फैलाना शुरू कर दिया था। जंगल तटीय क्षेत्रों नें भाकपा – माओवादी संगठन को खुव फलने- फूलने का अवशर दिया। इन क्षेत्रों में राजपुत को छोड़कर वाकी सारी तमाम जातियाँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाकपा माओवादी संगठन को भरपुर साथ दिया। नतीजन राजपुत एवं ऊँच्ची जातियाँ भाकपा -माओवादी के निशाने पर रही। ऊँच्ची जातियों के पास कृषि योग्य भूमि जिवीको पार्जन के लायक थी, नतीजन इन्हें सामंती कहकर टारगेट किया गया। दलेल चक – बघौरा के राजपुत कृषक मजदुर श्रेणी के थें । लेकिन इनका रिस्तेदारी इसी क्षेत्र के आँजन गाँव में होने एवं राजपुत होने के कारण ही इन्हें सामुहिक नरसंहार में मारा गया।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
किस कारण से आंजन के राजपुत रहे भाकपा – माओवादियों के निशानें पर
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
आँजन गाँव के केदार सिंह एवं भरथ सिंह की सैंकड़ो एकड़ जमीन रही है जंगल तटीय क्षेत्र सहियार एवं सहजपुर में । यहाँ इनका कचहरी हुआ करता था, जहाँ रहकर खेती का कार्य किया जाता था। भाकपा – माओवादियों नें अपना प्रभुत्व बनाने के लिए केदार सिंह, सुरजा सिंह एवं दफादार राम स्वरूप सिंह की हत्या कर दी । इस घटना में छोटकी छेछानी के यादवों की संलिप्ता बतायी गयी थी। नतीजन आँजन के राजपुतों के द्वारा तीन की हत्या के बदले छोटकी छेछानी के स्त्री _पुरुष मिलाकर कुल सात लोगों की हत्या कर दी गयी।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
” छोटकी छेछानी में मारे गये सात यादवों के बदले में दलेल चक – बद्यौरा में 53 राजपुतों का किया गया था सामुहिक नरसंहार “,,,,,,,, 1980 की दशक में भाकपा – माओवादियों नें राजपुतों सहित अगड़ी जातियों का बर्चस्व समाप्त करने एवं एक खास जाति का बर्चस्व सत्ता में स्थापित करनें की नियत से सामुहिक नरसंहारों का दौर पुरे बिहार में चलाया गया। नतीजन सेनारी, दरमियाँ, दलेल चक, बद्यौरा में ऊँची जातियों का सामुहिक नरसंहार किया गया। 29 मई 1987 की रात्री में दलेल चक बघौरा में सामुहिक राजपुतों की हत्या इसी का परिणाम है। हत्या की रात्री इन दोनों गाँवों में सामुहिक नरसंहार के बाद यह नारा भी लगाया गया था कि – छोटकी छेछानी का बदला ले लिया । सात का बदला – सत्तर से लिया ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
” तत्कालिन सरकार की विफलता का परिणाम था – दलेल चक – बघौरा हत्या कांड “,,,,,,,,, 1987 में मदनपुर प्रखंड़ के तत्कालिन बी.डी. ओ. नें बिहार सरकार को पत्र लिखकर मदनपुर के जंगल तटीय इलाकों में राजपुतों के सामुहिक नरसंहार होनें की संभावना की सूचना दी थी। लेकिन विन्देश्वरी दुवे की गुँगी -बहरी सरकार कुंभकरणी निद्रा में सोयी रही ।नतीजन दलेल चक – बघौरा कांड़ घटित हो गया। महज चार से पाँच किलो मीटर पर स्थित मदनपुर थानें की पुलिस घटना की सूचना मिलनें के बाद भी भय के कारण रात्री में नहीं पहुँच सकी। औरंगाबाद जिला की पुलिस चार बजे भोर में पहुंची तो वहीं मदनपुर की पुलिस सुर्य निकलनें के बाद । घटना की सूचना मिलनें पर तत्कालिन मुख्य मंत्री विन्देश्वरी दुबे, नेता प्रतिपक्ष कर्पुरी ठाकुर, केन्द्रिय गृह मंत्री सरदार बुटा सिंह नें घटना स्थल दलेल चक बघौरा गाँव का दौरा किया। सवों नें लाशों पर राजनीति करनें के लिहाज से घोषनायें की झड़ी लगा दी।हिंसा प्रभावित गाँवों के आश्रितों को मुआबजा मिले, सरकारी नौकरी मिले, प्रभावित गाँवों में पक्की सड़कें बनायी जायें, पुलिस चौकी बनायी जाय, औरंगाबाद तथा अरवल जिला को मिलाकर पुलिस रेंज बनायी जाये ईत्यादी । लेकिन घरातल पर उतरा सिफर । घटना के 3 4 वर्ष वितने के बाद भी बघौरा में न तो पक्की सड़क ही बनी,न पुलिस चौकी और न ही औरंगाबाद -अरबल जिला को मिलाकर पुलिस रेंज ही बना । अलबता, इस घटना में शामिल कुछ लोगों को न्यायालय के द्वारा बीस वर्ष की कारावास की सजा भी हुई तो वो भी समय से पहले ही सजा मुक्त हो गये । लेकिन अभी भी मदनपुर का संपूर्ण क्षेत्र प्रतिबंधित भाकपा – माओवादी (नक्सलवादी )के खौफ का दंश झेल ही रहा है।