डीके अकेला की रिपोर्ट
जाने – माने सांस्कृतिक कार्यकर्ता, सम्मानित ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता, पीयूसीएल राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और भिलाई में छत्तीसगढ़ राज्य इकाई के उपाध्यक्ष कलादास डेहरिया के घर पर 25 जुलाई, 2024 की सुबह एनआईए द्वारा की गई छापेमारी की पीयूसीएल राष्ट्रीय और छत्तीसगढ़ राज्य इकाई कड़ी निंदा करती है। एनआईए ने उनके घर की तलाशी की कोई वजह नहीं बताई, उसके वकीलों को उनसे मिलने की इजाज़त नहीं दी, तलाशी वारंट नहीं दिखाया और इलेक्ट्रॉनिक सामानों का हैश वैल्यू उन्हें न देकर कानून और संवैधानिक सुरक्षा की अवहेलना की। उनके साधारण से घर की 4 घंटे की तलाशी के बाद उनके फोन, लंबे समय से बंद पड़े एक लैपटॉप और एक पेन ड्राइव, जिसमें विभिन्न कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल किए गए पैम्फलेट का संग्रह था, के साथ एनआईए ने उनका घर छोड़ा।
मुकदमें द्वारा उत्पीड़न: एनआईए अधिकारियों का आश्चर्यजनक वाला व्यवहार: पड़ोसियों के घरों पर ताला लगाना, वकीलो को इजाज़त नहीं दी गई, हैश वैल्यू नहीं दी गई
एनआईए ने जिस तरह से तलाशी ली, वह पूरी तरह से गैरकानूनी है, क्योंकि एनआईए और दूसरे पुलिस अधिकारियों ने तलाशी अभियान के दौरान किसी भी निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया। न केवल कलादास, उनके परिवार और सहयोगियों के दिलो-दिमाग में डर पैदा करने के लिए, बल्कि दूसरे मानवाधिकार रक्षकों, ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी डराने और उनमें डर पैदा करने के लिए छापेमारी दुर्भावना से प्रेरित थी ।
यह जानना जरूरी है कि छापेमारी किस तरीके से की गयी। 25 जुलाई, 2024 की सुबह करीब 5:30 बजे कलादास भाई और उनकी पत्नी नीरा की नींद उनके दरवाजे पर जोर-जोर से भड़भड़ाने से खुली। जब उन्होंने दरवाजा खोला, तो बाहर बड़ी संख्या में पुलिस बल खड़ा दिखा, जिसमें 15-16 लोग थे, जो 4 वैन में आए थे। उनमें से कुछ दुर्ग जिला पुलिस से थे (क्योंकि भिलाई इसी जिले के अंतर्गत आता है)।
बाकी लोगों ने खुद को एनआईए रांची से आया बताया। उन्होंने कलादास भाई को यह नहीं बताया कि वे किस विशेष मामले की जांच कर रहे हैं, लेकिन शुरुआत में ही उन्हें बता दिया कि उनके पास ‘सूचना’ थी कि वे “भारत विरोधी गतिविधि” में लगे हुए हैं। इसके बाद पुलिस ने पूरे घर की गहन तलाशी ली, पूरे शंकर नियोगी पुस्तक संग्रह को खंगाला, गद्दों को उलटा-पुलटा, नीरा बहन की रखी हुई सभी साड़ियों को खोला, प्रतिरोध कार्यक्रमों पर इकट्ठा किए गए सभी पोस्टरों और बैनरों को खंगाला। कलादास भाई के पास 5 पेन ड्राइव हैं, जिनमें से 4 लोक गीतों से भरी हैं और एक में विभिन्न कार्यक्रमों से लिए गए विभिन्न पैम्फलेट और घोषणाओं का संग्रह है, जिसे जब्त कर लिया गया। एनआईए ने सिम कार्ड निकालने के बाद कलादास भाई का फोन भी ले लिया और कलादास डेहरिया की बेटी, जो वर्धा में मीडिया अध्ययन की छात्रा है, द्वारा इस्तेमाल किया जा चुका, बेकार पड़ा एक लैपटॉप भी उठा लिया, आखिरी बार उसने अपने असाइनमेंट के लिए इसका इस्तेमाल किया था।
कलादास भाई कहीं भाग जाएंगे, या लोग पुलिस पर हमला न कर दें, इस डर से छापे के चार घंटों के दौरान कई पुलिस अधिकारी उनकी संकरी गली में बाहर तैनात थे, और मोहल्ले के किसी भी निवासी को गली में जाने से रोक रहे थे। यहां तक कि उन्होंने कुछ दरवाजों को बाहर से बंद कर दिया, लोगों को खिड़कियां खोलने से मना किया और यहां तक कि लोगों को पीने का पानी भरने के लिए बाहर निकलने से भी रोक दिया, जो नगर निगम के नलों पर सुबह सीमित समय के लिए ही उपलब्ध होता है। यह सुनिश्चित करने के लिए, कि छापेमारी कानून के मुताबिक की जा रही है या नहीं, वहां गए पड़ोस के एक वकील को भी कलादास भाई के पास जाने से पुलिस ने रोक दिया।
एसपी दुर्ग से की गई शिकायत से भी कोई मदद नहीं मिली, क्योंकि उन्होंने एनआईए टीम का मजबूती से बचाव करते हुए कहा कि छापेमारी और पूछताछ के दौरान वकीलों को अनुमति नहीं है, यह आपराधिक संहिता और सुप्रीम कोर्ट के कई निर्देशों का सीधा उल्लंघन है।
सर्वोच्च न्यायालय ने ‘ नंदिनी सत्पथी बनाम पी.एल. दानी’ (1978) मामले में स्पष्ट रूप से कहा कि “वकील की उपस्थिति कुछ मामलों में एक संवैधानिक अधिकार है”। इसके अलावा, यह माना गया कि पुलिस पूछताछ के समय आरोपी के वकील को उपस्थित रहने की अनुमति दे सकती है। न्यायालय का मानना था कि यदि वकील को जांच के दौरान उपस्थित रहने की अनुमति दी जाए तो अपने पर लगे आरोप के खिलाफ अधिकार (अनुच्छेद 20(3)) और किसी वकील से सलाह मशविरा करने का अधिकार (अनुच्छेद 22(1)), को लागू किया जा सकेगा । इसे “डीके बसु गाइडलाइंस” और “सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य” (2010) में दोहराया गया है।
पीयूसीएल इस बात से बेहद नाराज है, कि एनआईए ने कोई हैश वैल्यू नहीं दी और कलादास भाई से जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की क्लोन प्रतियां बनाने पर सहमति व्यक्त की। पीयूसीएल का मानना है कि यह पूरी तलाशी और जब्ती अवैध है।
जब एनआईए टीम ने कलादास को एक मेमो सौंपा, जिसमें 1 अगस्त, 2024 को झारखंड में एनआईए रांची के सामने खुद को पेश करने का आदेश दिया गया था, तब उन्हें पता चला कि तलाशी यूएपीए अधिनियम की धारा 10 और 13, सीएलए अधिनियम की 17 के तहत 2023 के एक एनआईए मामले के संबंध में गवाह के तौर पर की गई थी। (केस संख्या आरसी- 03/2023 / एनआईए / आरएनसी, दिनांक 23/08/2023)। ‘इन कागजातों से यह स्पष्ट नहीं है कि कलादास भाई और झारखंड के इस मामले का क्या संबंध है।’
पीयूसीएल की मांग है –
- कि एनआईए बताए कि वह उपरोक्त मामले की जांच कैसे कर रही है, जबकि एफआईआर केवल यूएपीए की धारा 10 और 13 के तहत है, जो गैरकानूनी गतिविधियों से संबंधित है, न कि आतंकवादी गतिविधि से?
कलादास डेहरिया को निशाना क्यों बनाया?
कलादास जी के बारे में
कलादास जी, जिस नाम से वे सबके बीच जाने जाते हैं, भिलाई छत्तीसगढ़ में श्रमिक शिविर जामुल (एसीसी प्लांट से सटे) के निवासी हैं। वे पीयूसीएल राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और पीयूसीएल छत्तीसगढ़ के उपाध्यक्ष हैं। बेहद बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी, वे अपनी सांस्कृतिक सक्रियता और संवैधानिक मूल्यों और संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। उनके द्वारा बनाये गए मंच “रेला” ने पूरे देश में यात्रा की है, प्रतिरोध के गीत गाए हैं, लोगों की पीड़ा और उनके सपनों को अभिव्यक्त करते हुए नुक्कड़ नाटक किए हैं। 90 के दशक से वे ट्रेड यूनियन आंदोलन और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्ता समिति) से जुड़े रहे हैं। गरीबों के साथ काम करते समय संघर्ष और रचनात्मक कार्य की विचारधारा का सख्ती से पालन करना, जैसा कि प्रसिद्ध विचारक और ट्रेड-यूनियन एक्टिविस्ट शंकर गुहा नियोगी ने निर्धारित किया था। वह एनएपीएम के राष्ट्रीय समन्वयक भी हैं, और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और जन संघर्ष मोर्चा से जुड़े हैं, जो प्राकृतिक संसाधनों और लोगों को बचाने के लिए कई संगठनों का गठबंधन है।
पीयूसीएल के लिए यह एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि कलादास भाई जैसे प्रसिद्ध सांस्कृतिक, ट्रेड यूनियन और मानवाधिकार कार्यकर्ता पर भारतीय राज्य के इस हमले का केवल एक ही उद्देश्य है – रोजमर्रा के कामों को अपराधी बनाना और एक डरावना माहौल बनाना। मजदूरों को डराना-धमकाना, ताकि वे उचित वेतन के लिए भी संघर्ष न करें। यह भी सर्वविदित है कि कलादास भाई कॉर्पोरेट हितैषियों द्वारा हंसदेव अरण्य के प्राचीन जंगल के प्रस्तावित पेड़ों की कटाई के खिलाफ एक बड़े प्रतिरोध का हिस्सा थे, इसलिए उन्होंने राज्य सरकार को लोगों की ओर से एक और ज्ञापन भेजा था, जिस पर कई लोगों ने हस्ताक्षर किए थे। वे लोगों को संगठित भी कर रहे थे और फोर लेबर कोड के कार्यान्वयन के खिलाफ कई बार सरकार को पत्र भी लिख चुके थे। उन्होंने अन्य लोगों के साथ मिलकर एसीसी में सीमेंट वेज बोर्ड को लेकर चल रहे संघर्ष के अलावा बस्तर में ग्रामीणों की अंधाधुंध न्यायेतर हत्याओं का मुद्दा भी उठाया था। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि कलादास छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के साथ-साथ भारत सरकार दोनों के लिए खतरा थे, क्योंकि वे कॉर्पोरेट परियोजनाओं के खिलाफ एक महत्वपूर्ण प्रतिरोधी आवाज थे, जो आदिवासियों की पर्यावरण और आजीविका सुरक्षा, मजदूरों के उचित वेतन और अच्छे जीवन स्तर के अधिकारों के लिए संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन के खिलाफ आवाज़ उठाते थे।
पीयूसीएल की मांगे कि एनआईए उन्हें उपरोक्त यूएपीए मामले की जांच में आगे न घसीटे, उसके पास से जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को लौटाया जाय और ईमानदारी से कानून के शासन और संवैधानिक आदेश का पालन किया जाय, संघर्षरत लोगों की सरकारी नीति के खिलाफ रोजमर्रा की सक्रियता और असहमति को अपराधीकरण देना बंद किया जाय।
कविता श्रीवास्तव (राष्ट्रीय अध्यक्ष), वी. सुरेश (राष्ट्रीय महासचिव) और
डिग्री प्रसाद चौहान, अध्यक्ष, पीयूसीएल छत्तीसगढ़, आशीष बेक, महासचिव, पीयूसीएल छत्तीसगढ़ पता – 332, पटपड़ गंज, आनंद लोक अपार्टमेंट के सामने (गेट नंबर 2), मयूर विहार-1, दिल्ली 110 091