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बिजली के करंट से युवक की मौत, जिले में बिजली व्यवस्था के जर्जर स्थिति पर स्थानीय जनप्रतिनिधि और अधिकारी चुप क्यों

अम्बुज कुमार खबर सुप्रभात समाचार सेवा


औरंगाबाद जिले के गोह थाना क्षेत्र अंतर्गत टकौरा गांव में एक युवक की मौत बिजली के करंट से होने का मामला प्रकाश में आया है। जानकारी के अनुसार टकौरा गांव में बिजली के खंभे से विद्युत प्रवाह हो रहा था। अनजान व भूल वस टकौरा गांव निवासी शंकर दास के पुत्र जंटू कुमार (24) का स्पर्श बिजली के खंभे से हो गई। बिजली के करंट से जंटू दास बुरी तरह घायल हो गया। फलस्वरूप उसे बेहतर इलाज के लिए औरंगाबाद सदर अस्पताल लाया गया जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। बताते चलें कि जंटू दास कोई पहला व्यक्ति नहीं है जिसे बिजली विभाग के लचर व्यवस्था के कारण असमय मौत हुई है। जिले में अक्सर इस तरह का मौत की घटना प्रकाश में आते रहता है। फिर भी बिजली विभाग के अधिकारियों को झुकनी और लापरवाही थमने का नाम नहीं ले रहा है। बिजली व्यवस्था आज पुरे जिले में जर्जर बना हुआ है और अधिकारियों तथा जनप्रतिनिधियों का चुप्पी साधे रहना यह संकेत दे रहा है कि जिले में अधिकारी और जनप्रतिनिधि केवल अभिषाप बन कर रह गये हैं। आज स्थिति यह है कि बिजली के तार और खंभे का जर्जर स्थिति बना हुआ है। थोड़ी सी हवा और बुंदा बुंदी बर्षा हुआ कि बिजली आपूर्ति ठप हो जाया करता है। इस लिए कि जर्जर तार और खंभा कब और कहां बड़े हादसा का घटना घटित कर देगा कहना मुश्किल है। जर्जर तार और खंभा बदलने के बजाय विभाग बिजली आपूर्ति ठप कर देना ही समस्या का समाधान का बेहतर विकल्प समझ बैठे हैं। जबकि बिहार सरकार का दावा है कि बिजली आपूर्ति निर्वाध गति से जारी रहेगा और शाम होने के बाद बिजली के कटौती नहीं करना है। लेकिन औरंगाबाद जिले में बिहार सरकार के इस आदेश को विभागीय अधिकारियों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है और अपने मनमानी और लापरवाही का सभी हदें पार कर चुके हैं। फिरभी जिले के आलाधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक या तो अनभिज्ञ हैं या फिर इन्हें इस मामले को जानबूझकर नजर अंदाज कर रहे हैं। स्थिति चाहे जो भी हो दोनों हालत में यदि कहा जाए तो जिले के अधिकारी और जनप्रतिनिधि आज के तारीख में अभिषाप साबित हो रहे हैं। आश्चर्य तो यह है कि बिजली के जर्जर स्थिति हो या फिर सरकार के अन्य योजनाओं में गड़बड़ी के साथ साथ घपला – घोटाला का मामला हो आज मिडिया के माध्यम से नहीं के बराबर उजागर हो रहा है। इसका मूल वजह या तो मिडिया कर्मियों का भी भूमिका मुकदर्शक सा बना हुआ है या फिर डरे और शहमे हुए हैं।