तजा खबर

आर्ची ने किया अपने दादा जी का श्राद्धकर्म, रूढ़ परंपराएं तोड़ कर आगे आ रही है बेटियाँ

नवादा से गौरी विश्वकर्मा का रिपोर्ट

बेटियाँ जब ठान लेती है तो रूढ़ से रुढ़तम परंपराएं भी टूट कर बिखरने लगती है । अब तक बेटियों को अर्थियां उठाने , श्मशान घाट तक जाने और मुखाग्नि देने की वैदिक प्रतिबन्ध को टूटते देखा था किन्तु अब तपस्विनी कर्ता बनकर उतरी लेने और 13 दिनों तक कठिन व्रत रख कर संपूर्ण श्राद्धकर्म पूरा करने का भी उदाहरण मिलने लगा है । नवादा नगर के मालगोदाम रोड इंदिरागांधी चौक निवासी ज्ञानदेव विश्वकर्मा की कनिष्ठ सुपुत्री बीए.एल.एल.बी. की छात्रा आर्ची शर्मा ने ऐसा ही उदाहरण पेश किया है । अपने दादा स्वo शिवसहाय मिस्त्री की अर्थी उठाने से लेकर मुखाग्नि देने और अब 13 दिनों तक कठिन ब्रत रखकर श्राद्ध क्रम का कर्ता बनने की जिद्द ने शास्त्रीय कर्मकांड के रास्ते को ही बदल दिया । श्राद्ध के आचार्य पंडित बिनोद पाण्डेय ने बताया कि अपने पूज्य दादा के प्रति आर्ची शर्मा की निष्ठा और समर्पण ने रूढ़ परंपराओं को तोडा है जो स्वागत योग्य है । उतरी में रोज सुबह-शाम दो किलोमीटर पैदल चलकर खुरी तट पर कुशा में पानी देना और स्वयं नमक रहित सात्विक भोजन पकाकर 13 दिन गुजारना आर्ची जैसी साहसी लड़की ही कर सकती है । इस सन्दर्भ में आर्ची ने बताया कि मेरे दादा जी के एकमात्र पुत्र ज्ञानदेव विश्वकर्मा हैं जो डायविटीज जैसी बीमारी से ग्रस्त हैं । उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मैंने उन्हें उतरी लेने नहीं दिया और स्वंय पूज्य दादा जी का श्राद्ध करने का निर्णय लिया ।